Suraaj Patrika
Thursday, July 22, 2010
मेरा मन
मेरा मन
एक पंछी
अनंत गगन की उचाई को
छूने को उड़ता
उड़ता जाता - उड़ता जाता
फिर ,
थककर गिर जाता
घायल पंख
लहूलुहान शारीर
पर , आतुर पड़ा वह
फिर से तैयार
एक नई यात्रा को
एक और यात्रा को................!
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