Thursday, July 22, 2010

नीद

काली अँधेरी रात में
जब जागती है
कुछ कड़वी - मीठी स्मृतिया
और .....मेरे आँखों से
लगता है टपकने
बूँद बूँद खारा आंसू
शैने -शैने बहता है
धार बनकर भीतर तक
कोई कैसे सो सकता है
आँखों को बंद करके
जबकि निरंतर जारी है
सब कुछ !
और कल्पनाओ में
चित्रित होते है
पिछले दिनों की अनुभितिया
फिर कैसे कोई सो सकता है
इन अनुभितियो को ओढ़कर
आँखों को बंद कर ।

मेरा मन

मेरा मन
एक पंछी
अनंत गगन की उचाई को
छूने को उड़ता
उड़ता जाता - उड़ता जाता
फिर ,
थककर गिर जाता
घायल पंख
लहूलुहान शारीर
पर , आतुर पड़ा वह
फिर से तैयार
एक नई यात्रा को
एक और यात्रा को................!

Wednesday, July 21, 2010

एक शाम सिंदूरी दे दो

कई बार चाहा तुमसे कहू

मुझेएक शाम सिंदूरी दे

थक चूका हु टुकड़ो में जीते हुए

मुझे जिंदगी पूरी दे दो

तुम्हारे पास है और

मै भटक रहा हु

तुम मुझे मेरी सिंदूरी दे दो

अगर नहीं दे सकते

तुम !

प्यार का स्पर्स

तो , जिसे सह लू

वह अनंत दुरी दे दो ।

आओ कोई बहाना ढूंढे

जश्न मना ले आज की शाम

या फिर लिख दे इन लम्हों में

सूरज चाँद तुम्हारे नाम

कल इसी लम्हा

हम जाने कैसे किस हाल में हो

कौन भुला दे कौन पुकारे

किन शहरों के जल में हो

दिल पे लिख लो इनका नाम

या फिर लिख दो इन लम्हों में

सूरज चाँद तुम्हारे नाम ।